Kaifi Azmi

Ghazal – मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

kaifiyat

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मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

Main DhunDta Hun Jise Wo Jahan Nahin Milta

The new horizons that I seek are beyond me.
The world I am in search of cannot be found.

The arrows that have pierced my heart have been discovered
but the hands that pulled the string cannot be found.

Here I am standing in the midst of a jungle of faces
and yet it is your countenance that cannot be found.

What is the worry if I cannot find God,
when my own footprints cannot be found.

میں ڈھونڈتا ہوں جسے وہ جہاں نہیں ملتا


Ghazal – मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
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