Ghazal – शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा

شور یوں ہی نہ پرندوں نے مچایا ہوگا

  • Recited by: Zubair

शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा,

कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,

जिस्म जल जायेंगे जब सर पे न साया होगा।

बानी-ऐ-जश्न-ऐ-बहारां ने ये सोचा भी नहीं,

किस ने काँटों को लहू अपना पिलाया होगा।

बिजली के तार पे बैठा हुआ हँसता पंछी,

सोचता है के वोह जंगल तो पराया होगा।

अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे,

हर सराब उन को समन्दर नज़र आया होगा।

शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा

Ghazal – शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा