Ghazal – की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ

کی ہے کوئی حسین خطا ہر خطا کے ساتھ

The lion still roars - Kaifi Azmi

की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ

थोड़ा सा प्यार भी मुझे दे दो सज़ा के साथ

गर डूबना ही अपना मुक़द्दर है तो सुनो

डूबेंगे हम ज़रूर मगर नाख़ुदा के साथ

मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे

हम ने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ

रक़्स-ए-सबा के जश्न में हम तुम भी नाचते

ऐ काश तुम भी आ गए होते सबा के साथ

इक्कीसवीं सदी की तरफ़ हम चले तो हैं

फ़ित्ने भी जाग उट्ठे हैं आवाज़-ए-पा के साथ

ऐसा लगा ग़रीबी की रेखा से हूँ बुलंद

पूछा किसी ने हाल कुछ ऐसी अदा के साथ

की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ

Ghazal – की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ